Hindi Shayari: दो लाइन शायरी
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Sunday, 25 March 2018

शायरी ख्वाहिश नहीं मुझे मशहूर...

शायरी ख्वाहिश नहीं मुझे मशहूर...

ख्वाहिश नहीं मुझे मशहूर होने की।
आप मुझे पहचानते हो बस इतना ही काफी है।

अच्छे ने अच्छा और बुरे ने बुरा जाना मुझे,
क्योंकी जिसकी जितनी जरुरत थी उसने उतना ही पहचाना मुझे।

ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा भी कितना अजीब है,
शामें कटती नहीं, और साल गुज़रते चले जा रहे हैं।

बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर...
क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है।

मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा,
चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना।

ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ऐब नहीं है पर
सच कहता हूँ मुझमे कोई फरेब नहीं है।
कोई नया जख्म हिंदी शायरी...

कोई नया जख्म हिंदी शायरी...

कितनी जल्दी दूर चले जाते है वो लोग,
जिन्हें हम जिंदगी समझ कर कभी खोना नहीं चाहते।
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आज कोई नया जख्म नहीं दिया उसने मुझे,
कोई पता करो वो ठीक तो है ना।
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कहाँ नहीं तेरी यादों के कांटे,
कहाँ तक कोई दामन बचा के चले।
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दम तोड़ जाती है हर शिकायत लबों पे आकर,
जब मासूमियत से वो कहती है मैंने क्या किया है?
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उसके सिवा किसी और को चाहना मेरे बस में नहीं,
ये दिल उसका है, अपना होता तो बात और थी।
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उस दिल की बस्ती में आज अजीब सा सन्नाटा हैं ,
जिस में कभी तेरी हर बात पर महफ़िल सज़ा करती थी।
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तेरा नज़रिया मेरे नज़रिये से अलग था,
शायद तुझे वक्त, गुज़ारना था और मुझे जिन्दगी।
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डरता हूँ कहने से की मोहब्बत है तुम से,
कि मेरी जिंदगी बदल देगा तेरा इकरार भी और इनकार भी।
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सलीक़ा हो अगर भीगी हुई आँखों को पढने का,
तो फिर बहते हुए आंसू भी अक्सर बात करते हैं।
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ये भी एक तमाशा है इश्क ओ मोहब्बत में,
दिल किसी का होता है और बस किसी का चलता है।
आँखों के रूबरू आ जाओ...

आँखों के रूबरू आ जाओ...

आ भी जाओ मेरी आँखों के रूबरू अब तुम,
कितना ख्वावों में तुझे और तलाशा जाए।
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अल्फ़ाज़ चुराने की ज़रूरत ही ना पड़ी कभी,
तेरे बे-हिसाब ख्यालों ने बे-तहाशा लफ्ज़ दिए।
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आसान नही आबाद करना घर मोहब्बत का,
ये उनका काम हे जो ज़िदगी बरबाद करते हैं।
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तू घड़ी भर के लिए मेरी नज़रो के सामने आजा,
एक मुद्द्त से मैंने खुद को आईने में नहीं देखा।
मुकद्दर की लिखावट...

मुकद्दर की लिखावट...

मुकद्दर की लिखावट का इक ऐसा भी कायदा हो,
देर से क़िस्मत खुलने वालों का दुगुना फ़ायदा हो।
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मैं नासमझ ही सही मगर वो तारा हूँ जो,
तेरी एक ख्वाहिश के लिए सौ बार टूट जाऊं।
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क्यों उलझता रहता है तू लोगो से फराज.
ये जरूरी तो नहीं वो चेहरा सभी को प्यारा लगे।
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वो पहले सा कहीं, मुझको कोई मंज़र नहीं लगता,
यहाँ लोगों को देखो, अब ख़ुदा का डर नहीं लगता।
महफ़िल से रुखसत...

महफ़िल से रुखसत...

यूँ चले जाते हैं
अपनी ही महफ़िल से रुखसत होकर
यूँ दिल को लगाकर
जलाना कोई उनसे सीखे।
इक़रार का डर...

इक़रार का डर...

डरता हूँ इक़रार से कहीं वो इनकार न कर दे,
यूँ ही तबाह अपनी जिंदगी हम यार न कर दे.

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