Hindi Shayari: ग़म शायरी
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Sunday, 25 March 2018

हमें कोई ग़म नहीं था...

हमें कोई ग़म नहीं था...

हमें कोई ग़म नहीं था ग़म-ए-आशिक़ी से पहले,
न थी दुश्मनी किसी से तेरी दोस्ती से पहले,
है ये मेरी बदनसीबी तेरा क्या कुसूर इसमें,
तेरे ग़म ने मार डाला मुझे ज़िन्दग़ी से पहले।

लोग पढ़ लेते है...

लोग पढ़ लेते है आँखों से मेरे दिल की बात...
अब मुझसे तेरे गम की हिफाजत नहीं होती ।

तेरी हालत से लगता है...

तेरी हालत से लगता है
तेरा अपना था कोई,
वरना...
इतनी सादगी से बरबाद
कोई गैर नहीं करता ।

ऐसे तो गम नहीं मिले...

ऐसा नहीं के तेरे बाद अहल-ए-करम नहीं मिले,
तुझ सा नहीं मिला कोई, लोग तो कम नहीं मिले,
एक तेरी जुदाई के दर्द की बात और है,
जिनको न सह सके ये दिल, ऐसे तो गम नहीं मिले।

वो सूरज की तरह...

वो सूरज की तरह...

वो सूरज की तरह आग उगलते रहे,
हम मुसाफिर सफ़र पे ही चलते रहे,
वो बीते वक़्त थे, उन्हें आना न था,
हम सारी रात करवट बदलते रहे।

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